वर्तमान समय मूल्यों के पतन का है। ऐसे समय में रचनाकारों का दायित्व बन जाता है कि वे अपने युगधर्म का निर्वाह करें। यह ब्लॉग रचनाधर्मिता को समर्पित है। मेरा मानना है- युग बदलेगा आज युवा ही भारत देश महान का। कालचक्र की इस यात्रा में आज समय बलिदान का।
गुरुवार, 29 अप्रैल 2010
जनता ही भ्रष्टाचारियों को सबक सिखाये
मेडीकल काउन्सिल ऑफ इन्डिया के चेयरमैन डा. केतन देसाई के घर से बरामद अरबों रुपयों की नकदी और जेबरात से लगता है कि वह कितनी बेरहमी के साथ हराम की कमाई को दोनों हाथों से बटोर रहे थे। मध्यप्रदेश में ही एक आईएएस दम्पत्ति भी करोड़ों की काली कमाई के साथ पकड़े गये। कभी किसी डायमंड किंग के यहां अकूत धन बरामद होता है तो किसी नेता के यहां तो इतना अकूत पैदा मिलता है कि जिसकी कल्पना नहीं की जा सकती। आश्चर्य इस बात का भी है कि मामूली आय बढ़ने पर आयकर विभाग हरकत में आ जाता है। गुप्तचर विभाग भी रातोंरात अमीर बने हुए लोगों पर नजर रखता है। और तो और यार-दोस्त और रिश्तेदार भी ऐसे लोगों पर कड़ी नजर रखते हैं। लेकिन लगता है कि इस देश को जंग लग गई है। लोकशाही सामंतशाही में बदलती जा रही है। इन लोगों पर न तो सरकारी अंकुश है और न ही इन्हें जनाक्रोश से रूबरू होना पड़ता है। चंद लोग पूरे देश को बर्वाद करने में लगे हुए हैं। अपने को लोकप्रिय कहने वाली सरकारें इनकी बंधक बन चुकी हैं। इसीलिए आजाद हिंदुस्तान में किसी भी बड़े आदमी यानी नेता, अधिकारी या व्यापारी को कड़ा दंड नहीं मिला है। हां भ्रष्टाचार के नाम पर दंड अगर मिलता है तो किसी बाबू, चपरासी जैसे मामूली कर्मचारियों को। व्यापारियों में भी छोटे-मोटे ही हाथ लग पाते हैं। नेता की सम्पत्ति की तरफ न तो सरकार आंख उठाकर देखती है और न ही जनता ही। सवाल इस बात का है कि क्या देश में डा. देसाई जैसे कितने मगरमच्छ हैं। यह लोग बड़े आराम से धन बटोरते रहे हैं। लेकिन इस ओर किसी का ध्यान नहीं है। क्या देश ऐसे भ्रष्ट अधिकारियों, नेताओं और व्यापारियों की तिकड़ी पर कथक करता रहेगा या कालाबाजारियों और दलालों की बीन की धुन पर नाचता रहेगा। वस्तुतः आजादी के बाद भ्रष्टाचार अथवा घूसखोरी को बहुत बड़ा पाप माना जाता था। लोग ईमानदारी से अपनी नौकरी करते थे। लेकिन समय बदल नैतिक मूल्यों के स्थान पर भौतिकता प्रभावी हो गई। राजनीति पूरी की पूरी भ्रष्टाचार की कीचड़ में सन गई। व्यापार कालाबाजार अथवा मुनाफाखोरी का पर्याय बन गया। इन सभी का एकमात्र ध्येय किसी भी तरह से जनता के धन को लूटना और समाज में संपन्नतम व्यक्ति के रूप से अपने को स्थापित करना तथा विलासिता के सागर में गोते लगाना रहा। क्या इन भ्रष्टों का खेल ऐसे ही चलता रहेगा ? यह इस महान देश की त्रासदी है कि एक और करोड़ों लोगों को दो जून की रोटी मयस्सर नहीं होती। दवा-दारू के अभाव में लाखों लोग असमय ही मौत के शिकार हो जाते हैं। सरकारी गोदामों में भ्लले ही अनाज सड़ता रहे। चूहो का निवाला बनता रहे लेकिन उस पर गरीबों का कोई हक नहीं है। भ्रष्टाचार में अकेले डा. देसाई ही दोषी नहीं हैं अपितु हर अधिकार-संपन्न अधिकारी है। ठेकेदार हैं। इंजीनियर हैं। चिकित्सक हैं और शिक्षा की दुकान चलाने वाले ठेकेदार हैं। इनकी काली कमाई दिन-दूरी, रात-चौगुनी बढ़ती जा रही है। वैसे सरकार के वश की बात नहीं है कि वह भ्रष्टाचार को रोके क्योंकि वह खुद भ्रष्टाचार की गंगोत्री है। अगर वह भ्रष्टाचार को मिटाना चाहती है तो उसे एक ऐसा तंत्र विकसित करना पड़ेगा कि हर नेता, अधिकारी और व्यापारी की वार्षिक आय की सख्ती से जांच हो। बेनामी सम्पत्तियों को उजागर करने के लिए गुप्तचर विभाग मुस्तैदी से काम करे। अगर ऐसा नहीं हुआ तो जनता को ही ऐसे धनपशुओं को सबक सिखाने के लिए सड़कों पर उतरेगी। उन्हें सार्वजनिक रूप से अपमानित करेगी और उनकी हराम की कमाई को लूटेगी। तब क्या सरकार जनाक्रोश का सामना कर सकेगी। जब भूखे और वंचितों की भीड़ राजमार्गों पर उतरेगी तो देश का इतिहास बदल देगी।
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जनता को इसीलिये शिक्षित ही नहीं किया गया कि वह कुछ सोच समझ ही न सके...
जवाब देंहटाएंजनता तो भ्रष्टाचारियों के अमीरी को देखकर उनको प्रतिष्ठा देती है .. वो उनको क्या सबक सिखाएगी ??
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