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सोमवार, 28 जून 2010

क्यों धारहीन है कलम और केमरा

अभी हंस के संपादक और चिन्तक राजेंद्र यादव ने इलेक्ट्रोनिक मीडिया कीविश्वश्नियता पर सवाल खड़ा किया है। राजधानी के कुछ मीडियाकर्मी काफी पैसेवाले हो गए। कुछ ने तो आपने चैनल खोल लिए। इस देश में केवल नेता औरअधिकारी ही नहीं लोकतंत्र का कथित चौथा स्तम्भ भी भ्रष्टाचार से दूर नहीं है।मीडिया अथवा पत्रकारिता को लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कहा जाता है। लेकिनवर्त्तमान परिदृश्य में वह अपनी दिशा खोता जा रहा है। पत्रकारिता का मतलबकेवल समाचार देना ही नहीं होता अपितु समाज को जाग्रत करना तथा मार्गदर्शनदेना भी होता है। देश की मीडिया को इस बात से कोई मतलब नहीं है की महंगाईक्यों बढ़ रही है और कौन इसके लिए जिम्मेदार हैं। महिला आरक्षण के मामले मेंभी मीडिया एकपक्षीय रवैया अपना रहा है। अभी इंडिया टुडे में प्रकाशित तवलीनसिंह के आलेख में स्पष्ट है कि हमारी राजनीति और मीडिया महिलाओं के प्रतिकितनी संवेदनशील है। पंचायती व्यवस्था में हजारों ग्राम प्रधान, पार्षद, पञ्च, सभासद, जिला पंचायत सदस्य, ब्लाक सदस्य केवल नाम के लिए महिलाएं हैं औरउनके पद का दुरूपयोग उनके पति, भाई, ससुर, बेटे तथा पुरुष मित्र कर रहें हैं।क्या मीडिया बता सकता है कि उसने इन पदों का दुरूपयोग करने वाले कितनेपतियों, भाइयों तथा बेटों के खिलाफ समाचार प्रकाशित अथवा प्रसारित किया।क्या यह मीडिया की जिम्मेदारी नहीं है? स्वस्थ्य के नाम पर जनता को लूटा जारहा है। शिक्षा दुकानों में बदलती जा रही है। महाविद्यालय तथा विश्वविद्यालयभ्रष्टाचार के अड्डे बनाते जा रहें हैं। और तो और मीडिया संस्थानों में भी भूमाफिया, तस्कर, दलालों तथा अवैध धंधों में लिप्त लोग अपना दखल बढ़ाते जा रहें हैं।पत्रकारिता के नाम पर उगाही हो रही है। इस सबके पीछे एकमात्र कारण यह है किपत्रकार ने लिखना और पढना छोड़ दिया है। उसे तो सामाजिक सरोकारों सेमतलब है और ही देश की भलाई से। क्या मीडिया को यह पता नहीं है कि एकभूमाफिया अचानक कैसे समाज का सम्मानित आदमी बन गया? एक अदना सानेता कैसे करोड़ों से खेल रहा है? कैसे वजीफा के नाम पर सरकारी धन की लूट होरही है? किस प्रकार सरकारी ज़मीनों पर मंदिर और मजारों के नाम पर कब्जे होगए? किस तरह शहर का माना हुआ गुंडा विधायक और संसद बन गया? गरीबों केराशन को पचा कर कैसे लोग समाज के प्रतिष्ठित आदमी बन गए? सरकारी धन सेबनने वाली ईमारत और सड़क कैसे इतनी ज़ल्दी जर्जर हो जाती है? संसद औरविधायक निधि का पैसा कैसे स्कूल और कालेज रुपी निजी दुकानों में मोटी रिश्वतदेकर पचाया जा रहा है? अफसोस तो इस बात का है कि मीडिया लोगों को जागरूककरने के स्थान पर अन्धविश्वासी बना रहा है। कीर्तन और भजन तथा भविष्य फलके नाम पर अज्ञानता की और धकेल रहा है। इसीलिए अभी भी समय है की मीडियाअपनी असली भूमिका के बारे में आत्मचिंतन करे, अपने दायित्व को पहचानेअन्यथा उसकी गिरती विश्वसनीयता उसे गर्त में पहुंचा देगी.

3 टिप्‍पणियां:

  1. विचारोत्तेजक आलेख। मीडिया की भूमिका संदेह से परे नहीं है। चारो तरफ़ सवाल यूं ही नहीं उठ रहे।

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  2. हंस के संपादक तथा चिन्तक राजेन्द्र यादव द्वारा इलेक्ट्रोनिक मीडिया की विश्वश्नियता पर सवाल खडा किया जाना आज के परिप्रेक्ष्य में एकदम सही है । मैं भी इन स्वालों को लेकर चिंतित हूं । वास्तव में लोकतंत्र का चौथा खंभा माना जाने वाला मीडिया का क्षेत्र आज भ्रष्ट व गंदी राजनीति के शिकंजे में फंसता चल जा रहा है । कल तक कुकुरमुत्तों की तरह छोटे - मोटे अखबारों का बाजार गर्म था लेकिन आज धडाधड़ खुल रहे इलैक्ट्रॉनिक मीडिया हाउसों ने स्थिति और ज्यादा गंभीर बना दी है । इस क्षेत्र में आज माफियाओं , भ्रष्ट नेताओं , बिल्डरों आदि का बोल्बाला बढ़ गया है । ये लोग इस क्षेत्र में पत्रकारिता करने नहीं बल्कि अपने - अपने हितों को साधने आए हैं। इनका मकसद स्पष्ट है कि ये मीडिया की आड लेकर अपने काले कारनामों को छिपाने का पुरजोर प्रयास कर रहे हैं , तथा अपने इस मकसद में किसी हद तक सफल भी हो रहे हैं । अब जब मालिकाना डंडा होगा तो उसमें काम करने वाला अदना सा पत्रकार की क्या बिसात कि वह अपने मालिक के खिलाफ आवाज बुलंद कर पाए । आज महंगाई के दौर में लोगों का खाना - कमाना बेहद मुश्किल हो गया है , ऎसे में कौन अपने पेट पर लात मारेगा ?
    अत: मैं समझती हूं कि मीडिया की विश्वसनीयता बनाए रखने के लिए ऊपरी स्तर पर ही कदम उठाए जाने की आवश्यकता है , मसलन चैनलों व अखबारों का रजिस्ट्रेशन करते समय बेहद पारखी व कडी नजरें रखी जाएं व मालिकों का पूरा डाटा लिया जाए कि वे क्या हैं , क्या करते रहे है ,चैनल क्यों खोलना चाहते हैं उसके पीछे उनकी क्या मंशा है आदि - आदि ......।

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  3. सच है. इलैक्ट्रॉनिक मीडिया की बढत के बाद आज पत्रकारिता का स्वरूप ही बदल गया है. समझ में ही नहीं आता कि पत्रकारिता के नाम पर
    क्या हो रहा है. आभार.परिहार साहब, शब्दपुष्टिकरण हटा लें तो टिप्पणिकर्ताओं को सुविधा होगी.

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