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शुक्रवार, 16 जुलाई 2010

प्रदेश में अपराधियों का बोलवाला

प्रदेश में जब सुश्री मायावती कुर्सी पर आसीन हुईं थीं तो लोगों ने चैन की सांस ली थी कि अब गुंडागर्दी कम होगी और आम लोगों को शांति के साथ रहने का मौका मिलेगा। लोगों का सोचना भी सही था कि क्यों सुश्री मायावती ‘‘चढ़ गुंडों की छाती पर, बटन दबेगा हाथी पर‘‘ के नारे के साथ सपा शासन में व्याप्त गुंडागर्दी के खिलाफ जीतकर सत्ता में आईं थी। लेकिन अब लगता है कि हाथी ही गुंडों के चक्कर में फंस गया है। प्रदेश में कानून और व्यवस्था की स्थिति निरंतर खराब होती जा रही है। अपराधियों के हौंसले बुलंद हैं। दिन दहाड़े हत्या, लूट और अपहरण का दौर जारी है। महिलाओं का घर से निकलना मुश्किल हो गया है। एक महिला के शासन में महिलाओं की इज्जत भी सुरक्षित नहीं है। क्या प्रदेश की स्थिति ऐसी रहेगा अथवा उसमें कोई सुधार आयेगा। फिलहाल इतना तो निश्चित है कि अपराधियों में सत्ता की हनक समाप्त हो गई है। शरीफ आदमी अपनी जान-माल की सुरक्षा के लिए विवश नजर आता है।
कभी राजनीति में तपे तपाये लोग आते थे। उनकी भावना समाज और देश की सेवा करने की होती थी। लेकिन अब तो राजनीति में अपराधी तत्वों की भरमार हो गई है। सफेदपोश अपराधी भारी संख्या में राजनीति में आ गये हैं। इनको अपने स्वार्थ के लिए सत्ताधारी दल का दामन थामना पड़ना है। यही कारण है कि प्रदेश में गुंडागर्दी और अपराध चरमसीमा पर है। अगर राजनीति में अपराधियों का प्रवेश बंद हो जाये तो अपराध स्वतः ही समाप्त हो जायेगा।
जिस पुलिस पर प्रदेष में कानून और व्यवस्था की जिम्मेदारी हैं वही अपने काम को सही तरीके से अंजाम नहीं दे रही है। पुलिस कर्मी और अधिकारी जनता की सेवा की अपेक्षा कमाई में लगे रहते हैं। जिससे अपराधियों के हौंसले बुलंद हैं। पुलिस में ईमानदार लोग भर्ती हों। तभी गुंडागर्दी पर रोक लग पायेगी। षासन किसी का हो लेकिन पुलिस वही रहेगी। अतः पुलिस व्यवस्था में आमूलचूल परिवर्तन जरूरी है। सरकार को भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई और ईमानदार पुलिस कम्रियों को प्रोत्साहन देना होगा।
पहले लोग संतोषी होते थे। लेकिन अब वह स्थिति नहीं है। हमारी दिशाभ्रमित युवा पीढ़ी अपराध में बढ़-चढ़कर योगदान दे रही है। उनको पीने के लिए बीयर या शराब चाहिए। पहनने के लिए ब्रांडेड कपड़े और जूते चाहिए। महंगे मोबाइल और बाइक चाहिए। इन सबके लिए अनाप-षनाप पैसा अपराध के जरिये ही आ सकता है। हर जगह ऐसे युवा मिल जायेंगे कि कुछ काम-धंधा किये बिना हजारों रुपये रोज खर्च करते हैं। ऐसे तत्वों पर निगरानी रखी जानी चाहिए।
एक तरफ तो आम आदमी महंगाई की वजह से परेशान है। दूसरे निरंतर बढ़ते अपराधों ने उसका जीना हराम कर दिया है। इस व्यवस्था में गरीब का ही मरना है। उसकी बिना पैसे न पुलिस में रिपोर्ट लिखी जाती है और न ही अपराधी उसपर रहम खाते हैं। किसी गरीब के घर चोरी से उसका पूरा घर भुखमरी का शिकार हो जाता है। गुंडागर्दी का शिकार गरीब ही अधिक होते हैं। सरकार को इस ओर कड़ाई से पेश आना चाहिए।
वस्तुत प्रान्त की कानून व्यवस्था लचर हो गई है। सब कुछ भगवान भरोसे चल रहा है। आम आदमी की तो औकात ही क्या है। सरकार के मंत्री भी सुरक्षित नहीं है। गुंडों पर कोई लगाम नहीं है। क्योंकि वही पैसा खर्च करते और कमाते है। सभी राजनैतिक दलों में अपराधियों की भरमार हो गई है। पूरा प्रदेश मिलावटखोरी, भ्रष्टाचार, हत्या, लूट से त्राहि-त्राहि कर रहा है और बहनजी आराम से कुर्सी का मजा ले रहीं हैं। उन्हें याद रखना चाहिए कि लोगों ने उन्हें गुंडागर्दी के खिलाफ ही वोट दिया था।

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