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शनिवार, 7 अगस्त 2010

क्यों हुआ संसद में महंगाई पर हंगामा



लगता है कि धूमिल ने सही ही कहा था-

संसद तेल की वह घानी है
जहां आधा तेल और आधा पानी है

संसद के हर सत्र प्रायः हंगामें से शुरू होते हैं। हंगामे के कारण कई दिनों तक संसद की कार्यवाही ठपरहती है। क्या हमारे संविधान निर्माताओं ने इसी संसद की कल्पना की थी जिसमें गंभीर बहस के स्थान
नारेबाजी और शोर-शराबा होता रहे। संसदीय मर्यादा की खुलेआम धज्जियां उड़ाई जायें। सत्ता और विपक्ष अपने-अपने पाले में तलवार भांजते रहें और बेचारी जनता मूक दर्शक की भांति इनका नाटक-नौटंकी देखती रहे। कभी हमारे देश की संसद में महान व्यक्तित्व थे जो अपनी योग्यता ईमानदारी, त्याग और जनसरोकारों से परिपूर्ण थे। सत्ताधारी दल भी योग्य विपक्षी नेताओं का सम्मान करता था और विपक्ष भी सरकार के लोकोपयोगी कार्यों की दलगत भावना से ऊपर उठकर समर्थन करता था। लगता है कि मतैक्य की भावना हमारी संसद से विदा हो चुकी है। सत्ता पार्टी का विपक्ष की बात मानना और विपक्ष का सत्ताधारी दल की हर बात का विरोध करना चलन बन गया है। महंगाई के मुद्दे पर हमारी संसद हंगामे की शिकार हो रही है। एक ओर विपक्ष काम रोको प्रस्ताव पर अड़ा है। वहीं दूसरी ओर सरकार किसी अन्य तरीके से इस बहस को कराना चाहती है जिससे बहस के बाद मतदान की नौबत आये।
मजाक बना दिया है
लगता है कि विपक्ष ने संसदीय कार्यवाही को मजाक के रूप में परिणित कर दिया है। विपक्षी हर मामले
में काम रोको प्रस्ताव के तहत बहस की मांग कर रहे हैं। वह चाहते हैं कि इसके माध्यम से सरकार को मतदान के संकट का सामना करना पड़े। संसद गंभीर बहस के लिए है। इस तरह की शोर-शराबे से जनता में गलत संदेश जा रहा है और संसद की मर्यादा का हनन हो रहा है। विपक्ष को हठधर्मी नहीं अपनानी चाहिए। वस्तुतः महंगाई से सारा देश पीड़ित है। इस पर संसद में किसी किसी रूप में बहस होनी चाहिए।
जनता को बेवकूफ बनाते हैं
संसद जनभावनाओं को मुखरित करने का संवैघानिक मंच है। लेकिन हमें इस बात को
कि समझना होगा कि संसद में वोटों की राजनीति के तहत कैसे लोग पहुंच रहे हैं।सभी महंगाई का रोना
रो रहे हैं। लेकिन कोई भी महंगाई को दूर करना नहीं चाहता। अब हमारी संसद में करोड़पतियों की भरमार है। महंगाई पर चर्चा महज उनके लिए बुद्धि-विलास है। हकीकत तो यह है कि विपक्षी दलों की जहां राज्य सरकारें हैं वह भी कालाबाजारियों तथा मुनाफाखोरों पर सख्ती करने में असमर्थ रहीं हैं।

सरकार क्यों घबराती है
जब केन्द्र में यूपीए सरकार का बहुमत है तो वह काम रोको प्रस्ताव के तहत महंगाई
पर चर्चा क्यों नहीं कराती ? आज महंगाई देश का ज्वलंत मुद्दा है। विपक्षी दल अपने
भी अपने दायित्वों का सही तरीके से निर्वहन कर रहे हैं। वैसे भी यह विपक्ष दलों का फर्ज होता है कि वह जनता की आवाज को संसद में बुलंद करें। सरकार को आखिर काम रोको प्रस्ताव पर आपत्ति क्यों
है ? आखिर वह आम जनता के नाम पर ही सत्ता में आई है।
स्पीकर निर्दलीय हो
अगर हमें लोकसभा की मर्यादा बनाये रखनी है तो स्पीकर को निर्दलीय होना चाहिए।
हालांकि स्पीकर सत्ताधारी दल का होता है लेकिन उससे यह अपेक्षा की जाती है की वह विपक्ष
की भावनाओं को भी सम्मान दे। अगर स्पीकर निर्दलीय होगा तो निश्चित रूप से अपने विवेक से
न्यायसंगत फैसला ले सकता है। स्पीकर की भी मजबूरी है कि आगे भी उसे सत्ताधारी दल से चुनाव लड़ना है। इसलिए वह सरकार के खिलाफ जाने की अधिक हिम्मत नहीं जुटा पाते।
जनता सब जानती है
ऐसा नहीं है कि भारतीय जनता बेवकूफ है जो राजनेताओं के घड़ियाली आंसुओं की सच्चाई को नहीं पहचानती। अगर हमारे सांसद वास्तव में ईमानदार है तो उन्हें संसद में हंगामें और कार्य सम्पादित होने के कारण अपने वेतन-भत्ते का त्याग करना चाहिए। संसद में हंगामा करने से महंगाई कम नहीं होगी। अगर हमारे सांसदों को महंगाई का अहसास होता तो वह संसद के स्थान पर
मुनाफाखोरों और कालाबाजारियों के खिलाफ मोर्चा खोलते। कोई कुर्सी पर बने रहने तो कोई कुर्सी पाने के लिए हंगामा कर रहे हैं।

1 टिप्पणी:

  1. सब लोग अपने चेहरे चमकाने में लगे हुए हैं. इसी में उन्हें देशहित नजर आ रहा है. मानसिक दिवालियापन के हालात बन गये हैं. पता नहीं जनता अपनी जिम्मेदारियां कब समझेगी.

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