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गुरुवार, 25 अगस्त 2011

विचार-बिगुल: अन्ना की हठ और उसके दुष्परिणाम लेखक डॉ. चन्द्रभान

विचार-बिगुल: अन्ना की हठ और उसके दुष्परिणाम लेखक डॉ. चन्द्रभान: अन्ना की हठ और उसके दुष्परिणाम
लेखक डॉ. चन्द्रभान

अन्ना का जनलोकपाल बिल, जो पाँच व्यक्तियों ने तैयार किया है, 30 अगस्त तक संसद पास हो...

अन्ना की हठ और उसके दुष्परिणाम लेखक डॉ. चन्द्रभान


अन्ना की हठ और उसके दुष्परिणाम
लेखक डॉ. चन्द्रभान

अन्ना का जनलोकपाल बिल, जो पाँच व्यक्तियों ने तैयार किया है, 30 अगस्त तक संसद पास हो जाना चाहिए अन्यथा अन्नाजी रामलीला मैदान नही छोड़ेगे और अपना आमरण अनशन जारी रखेंगे। यह जिद सरकार के लिये बहुत बड़ी धमकी और देश के प्रजातन्त्रीय प्रणाली के लिये बड़ा खतरा।
हमारे संविधान जिसके रचियता श्री अम्बेदकर सहित डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, जवाहर लाल नेहरू, अच्युत पटवर्धन, हरिविष्णु कामथ, हृदयनाथ कुंजरू जैसे कई विद्वान थे, ने केवल जनता के चुने हुये सदस्यों को ही यह अधिकार दिया है कि वे संसद में जनता के मुद्दो पर चर्चा करें और कानून बनायें। जिन लोगों ने अन्ना का बिल तैयार किया है। उनमें से एक भी जनता का नुमायन्दा नहीं फिर भी वे चाहते है कि उनका बिल संसद पास करे और वह भी उनके फरमान के अनुसार 30 अगस्‍त तक। इसका तात्पर्य यह हुआ कि अन्नाजी जनता के द्वारा चुने गये सांसदों पर्याप्त समय देने को भी तैयार नहीं ताकि उस बिल पर गहराई से विचार विमर्श या चर्चा कर सकें। सीधे-सीधे अन्नाजी संसद को धमकी दे रहे है कि या तो मेरा बिल पास करो नहीं तो मैं खाना पीना त्यागकर आत्महत्या कर लूँगा और मेरे समर्थक देश में अराजकता का ताण्डव फैला देंगे। अन्ना जी की इस जिद्द का सीधा तात्पर्य यह है कि सिविल सोसायटी के पाँच सदस्य संसद से भी ऊपर हैं। पाँच सदस्यों की अन्ना की यह चौकड़ी देश की निर्वाचित संसद से ज्यादा शक्तिशाली है। उनकी निगाह में असली संसद बौनी और पंगु है।
इस समय कुछ भ्रष्‍ट मंत्रियों की काली करतूतों के कारण सरकार सहमी हुई है। उसने इन्हें जेल का रास्ता दिखाकर प्रशंसनीय कार्य किया है। लोकपाल बिल सदन में पेश कर भ्रष्‍टाचार के खिलाफ अपनी कटिबद्धता का परिचय दिया है। लेकिन कॉमनवैल्थ और 2जी के घोटालों ने सरकार का मनोबल तोड़कर रख दिया है। ऐसी परिस्थितियों में सरकार अन्ना से निपटने के लिये कोई साहसिक कदम उठाने की हिम्मत नहीं कर पा रही है।
विपक्ष मौके का फायदा उठाने के लिये तैयार बैठा है। जो लोग वोटों से सत्ता हासिल नहीं कर पायें, वे अब अन्ना को मुखौटा बनाकर देश की कुर्सी हथियाना चाहते है। लेकिन उन्हें यह नहीं मालूम है कि दबाब में आकर अन्ना ने अपना बिल अगर पास करा लिया तो वह विरोधी पार्टियों के लिये भी उतना ही घातक सिद्ध होगा, जितना कि सत्ताधारी पार्टी के लिये। संसद कमजोर पडेगी और देश कमजोर होगा। सरकार और संसद अपना बिल पास करने की अधिकार खो बैठेगी। अन्ना स्वयं कहते है कि यह केवल एक बिल की बात नही है। अभी बहुत से मुद्दे है जिसपर लड़ाई लड़नी है। इससे स्पष्ट है अन्ना दूसरे बिलों का मसौदा भी अपने चन्द लोगों से ही तैयार करायेंगे और संसद को ढेंगा दिखाते हुये पास भी करायेंगे। ऐसी कठपुतली और लाचार संसद देश का और समाज का कितना भला कर सकेगी। यह विचारणीय विषय है।
संसद कमजोर तो देश कमजोर। बाहरी शक्तियाँ तो यह चाहती हैं कि प्रगति की ओर बढ़ते हुये इस देश को कैसे रोका जाय। ये लोग तो ऐसे अवसरों की ताक में बैठे रहते हैं। यही कारण है कि हमारी प्रगति से जलने वाले देश अपने अखबारों के माध्यम से अन्ना का समर्थन कर रहे हैं। अफसोस है कि हमारा भ्रमित युवक विदेशी शत्रुओं की चाल को समझ नही पा रहे है कि अन्ना जी की मुहिम के पीछे बहुत से ऐसे लोग है जो स्वयं भ्रष्‍टाचार के आरोपों से घिरे हुये हैं। कर्नाटक में भाजपा के पूर्व मुख्यमंत्री आज अन्ना के समर्थन में भूख हड़ताल करने जा रहे हैं। क्या ऐसे लोगों के समर्थन से भ्रष्‍टाचार समाप्त होगा?
बात केवल भ्रष्‍टाचा के मुद्दे की नहीं है। बात संसद एवं संसद की गरिमा की है। संसद के संवैधानिक अधिकारों की है। आज एक अन्ना है और उसकी हठ है। कल कोई दूसरा अन्ना होगा। एक अरब 25 करोड़ की आबादी वाले देश में दूसरा अन्ना तैयार करने में कितना समय लगेगा ? पूंजीपतियों के लिये तो यह काम बहुत आसान है। बस कुछ करोड़ रुपये खर्च कीजिये बहुत से तथाकथित समाज सेवियों की सेना तैयार हो जायेगी। उनमें से कोई भी कुछ करोड़ों के लालच में आकरअनशन करने को तत्पर हो जायेगा। पड़ोसी देश में आतंकवादी संगठन इसी प्रकार से लोगों को आत्मघाती बना रहे हैं। कसाब इसका जीता-जागता उदाहरण है। उसके परिवार को कुछ करोड़ रुपये दे दिये गये थे। और कसाब मुम्बई पर हमला कर, स्वयं मौत के मुँह में जाने को तैयार हो गया।
यदि कुछ अति-संपन्न लोग चाहते हैं कि कोई बिल ऐसा बने जिसमें उनके ही हितों की रक्षा हो तो वे किसी भी व्यक्ति को लालच देकर राजी कर लेंगे और जंतर-मंतर पर जाकर कुछ किराये के टट्टुओं की मदद से भूख हड़ताल पर बैठा देंगे। कुछ टीवी चैनल्स को पटा लेंगे और अपने मनमाफिक बिल पास करा लेंगे। वर्तमान परिस्थितियों में देश के समक्ष अनेक ज्वलंत विषय हैं। इनमें से बहुत से विषय ऐसे है जिनसे कुछ लोग वर्षों से दुखी हैं। उदाहरणार्थ उच्च वर्ग के अधिकांश लोग आरक्षण के बहुत खिलाफ हैं। वे चाहते हैं कि सरकारी नौकरियों में एससी, एसटी और ओबीसी का आरक्षण समाप्त होना चाहिए। अन्ना प्रकरण से उनकी राह बहुत आसान हो जायेगी। बस किसी नामी गिरामी आदमी को अनशन करने के लिए इस शर्त पर राजी करलें कि वह अपना अनशन तब तक नहीं तोड़ेंगे जब तक संसद आरक्षण समाप्त करने का बिल पास न कर दे। अन्ना जी का बिल पास हो जाने पर शायद नक्सलवादी भी प्रेरणा लेंगे और अपने हजारों, लाखों युवक-युवतियों को अनशन पर बैठा देंगे और शर्त रखेंगे कि उनका अनशन तब तक जारी रहेगा जब तक लाल कॉरीडोर को एक स्वतंत्र राष्ट्र नहीं बन जायेगा। माओवादी संगठन में तो हजारों युवक-युवतियां इस मुद्दे पर बलिदान देने को भी सहर्ष तत्पर हो जायेंगे। किसी भी सरकार की यह कहने की हिम्मत नहीं होगी कि यह अनशन असंवैधानिक है।
मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्‍तम्‍भ माना जाता है। जनता तक सही बात पहुंचाने की उनकी जिम्मेदारी के साथ पुनीत कर्तव्य भी है। अन्ना के आंदोलन में हमारे पत्रकार एवं टीवी चैनल्स का जोश देखते ही बनता है। इनकी रिपोर्टिंग में निष्पक्षता की कमी है। सावंत कमीशन की रिपोर्ट में अन्ना के खिलाफ लगाये सभी आरोप सिद्ध पाये गये लेकिन किसी भी समाचार पत्र ने इसे छापने का साहस नहीं किया। क्या भारत की जनता को यह जानने का अधिकार नहीं है कि अन्ना और उनके साथियों के ट्रस्ट अथवा एनजीओ के बारे में सुप्रीम कोर्ट जज की क्या राय है। अन्ना साहब के खिलाफ लगे चार्जों की छानबीन करने में जस्टिस सावन्त को तीन वर्षों का समय लगा। क्या ये चार्ज मामूली हो सकते हैं ? टी0वी0 चैनल ने देश के जाने माने व्याक्तियों से राय मांगी और जनता के सामने रखा। पत्रकारिता के इन धुरन्धरों ने यह क्यों नहीं उचित समझा कि जस्टिस सावन्त का टीवी पर साक्षात्‍कार लिया जाय और उनकी राय को उतना ही कवरेज दिया जाये जितना अन्ना और उसके सहयोगियों को दिया जा रहा है। क्या यह पत्रकारिता की गरिमा और मर्यादा के लिए उचित है कि एक ही पक्ष जनता के सामने परोसा जाय।
इस आंदोलन के बारे में हमारे समाचार पत्रों और टी0वी0 चैनल्स ही भ्रम फैला रहे हैं। हर शहर का स्थानीय अखबार कह रहा है कि पूरा शहर अन्ना के साथ है। इसी प्रकार सभी अखबार और चैनल्स दावा कर रहे हैं कि पूरा देश अन्ना के साथ है। यह तो मीडिया की निष्पक्षता और विश्वसनीयता को खतरे में डालकर इनके मालिकान टीआरपी अथवा अखबारों का प्रसार बढ़ा रहे हैं। अन्नाजी रिहाई पर तिहाड़ जेल के सामने केवल 4-5 हजार समर्थक मौजूद थे। मशाल मार्च में 15 हजार दर्शक तथा समर्थक थे। रामलीला मैदान में भी इतने ही लोग मौजूद हैं। जबकि दिल्ली एनसीआर की आबादी लगभग एक करोड़ से अधिक है। इस प्रकार एक करोड़ में से केवल 10-15 हजार अन्ना जी के समर्थन में सड़कों पर आये। क्या इसे जनता का सैलाब कहना उचित है। यह तो दिल्ली की कुल जनसंख्या का आधा प्रतिशत भी नहीं बैठता। एक चर्चित टीवी चैनल ने 16 नगरों में एक सर्वेक्षण किया जिसमें केवल 8 हजार व्यक्ति से अन्ना के आंदोलन सम्बंधी प्रश्न पूछे गये। प्रश्नों के आधार पर निष्कर्ष निकाल लिया गया कि देश की 70 फीसदी जनता अन्ना का समर्थन करती है। क्या 8 हजार लोगों को सम्पूर्ण देश की जनता की राय का प्रतीक माना जा सकता है ? क्या इस प्रकार के आंकड़े देश की सही तस्वीर प्रस्तुत कर रहे हैं ? वस्तुत: सैटेलाइट चैनल्स द्वारा देश की जनता को गुमराह किया जा रहा है। इस प्रकार से दुष्प्रचार से प्रजातंत्र तथा समाज दोनों को क्षति पहुंचत रही है। अत: देश के युवकों को सावधान रहना चाहिए और सही दिशा में कदम उठाना चाहिए।
प्रत्येक नागरिक अपनी जिम्मेदारी समझे तथा भ्रष्‍टाचार को मिटाने में सहयोग करे। भ्रष्‍टाचार एक जटिल मसला है। इसकी जड़े बहुत गहरी हैं। अनशन के दवाब में एक बिल के पास हो जाने यह मिटने वाला नहीं है। जो लोग भ्रष्‍टाचार के वृक्ष को वर्षों से सींच रहे हैं, वे लोग बहुत शक्तिशाली एवं शातिर हैं। अन्ना के सहारे वे अपनी पकड़ सरकार और समाज पर मजबूत करते जा रहे हैं । विचारणीय विषय है कि इस आंदोलन पर करोड़ों रुपया फूंका जा चुका है और कितने ही करोड़ रुपये और स्वाहा होने जा रहे हैं। कुछ खास कारपोरेट घराने इसमें महत्वूपर्ण योगदान दे रहे हैं। यह प्रश्न ही विचलित करता है कि केवल मुनाफे पर निगाह रखने वाला पूंजीपति इस आंदोलन पर अपना धन क्यों लुटा रहा है ? अपने चहेते लोगों के हाथों देश की सत्ता सौंपकर यह लोग भोली-भाली जनता से वसूल करेंगे जो आज भ्रष्‍टाचार से मुक्ति पाना चाहती है। सपने दिखाना बहुत आसान है परंतु साकार करना बहुत ही दुश्कर है7 ऐसा न हो कि हमारी संवैधानिक व्यवस्था की भी बलि चढ़ जाये और भ्रष्‍टाचार का भूत और अधिक भयावह हो जाये।
वस्तुत: संसद पर अपना फैसला थोपना और अनशन की धमकी से बिल पारित कराना देश के संवैधानिक ढांचे को तहस-नहस कर देगा।

लेखक चिंतक व विचारक एवं आरबीएस महाविद्यालय आगरा के पूर्व भूगोलविभागाध्‍यक्ष हैं ।
मोबाइल - 9411400657

शनिवार, 13 अगस्त 2011

प्रख्यात आल¨चक नामवर सिंह ने किया उषा यादव का सम्मान


प्रख्यात आलोचक नामवर सिंह ने किया उषा यादव का सम्मान

आगरा। प्रख्यात साहित्यकार एवं केएम मुंशी हिंदी विद्यापीठ, डा. भीमराव अम्बेडकर विश्घ्वविद्यालय आगरा की पूर्व प्रोफेसर एवं साहित्यिक संस्था इन्द्रधनुष की अध्यक्ष डा. उषा यादव का विगत दिवस मीरा फाउंडेशन के तत्वावधान में कला संगम, उत्तर-मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र इलाहाबाद में आयोजित भव्य समारोह में मीरा स्मृति सम्मान 2011 प्रख्यात आलोचक डा. नामवर सिंह ने प्रदान किया। समारोह के मुख्य अतिथि प्रदेश के उच्च शिक्षा मंत्री डा. राकेशधर त्रिपाठी व विशिष्ट अतिथि केन्द्रीय हिंदी संस्थान के कुलसचिव डा. चन्द्रकांत त्रिपाठी थे। इस अवसर पर डा. नामवर सिंह ने डा. उषा यादव के साहित्यिक अवदान की
भूरि-भूरि प्रशंसा की तथा उनके साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों पर प्रकाश डाला। समारोह में न्यायमूर्ति प्रेमशंकर गुप्ता, प्रख्यात साहित्यकार दूधनाथ सिंह, ममता कालिया, आउटलुक के संपादक नीलाभ सहित प्रदेश के वरेण्य साहित्यकार उपस्थित थे। कार्यक्रम का संयोजन डा. पृथ्वीनाथ पाण्डेय व संचालन डा. विजय अग्रवाल ने किया। डा. उषा यादव के सम्मानित होने पर पद्मश्री डा. लाल बहादुर सिंह चैहान, डा. राजकिशोर सिंह, डा. महाराज सिंह परिहार, शिवसागर, डा. सुषमा सिंह, डा. राजकुमार रंजन आदि ने हर्ष व्यक्त किया है।


फोटो परिचय- इलाहाबाद के कला संगम-उत्तर-मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र् पर आगरा की साहित्यकार डा. उषा यादव का सम्मान करते प्रख्यात आलोचक डा. नामवर सिंह

रविवार, 7 अगस्त 2011

अन्‍ना मौन क्‍यों हैं निजी क्षेत्र में व्‍याप्‍त भ्रष्‍टाचार पर

अन्ना हजारे व उनकी कथित सिविल सोसायटी ने भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग का ऐलान किया और उनकी इस मुहिम में सक्रिय भागीदारी की तथाकथित नवधनाढ्य और प्रोफेशनल्स ने। इस दौरान सरकारी भ्रष्टाचार की तो खुलकर बातें की गई, विदेशों में जमा काले धन पर सरकार को कोसा गया लेकिन निजी क्षेत्र में अजगर की भांति फैल गये भ्रष्टाचार पर किसी ने चर्चा करना भी उचित नहीं समझा। क्या कारण है कि कल के मामूली व्यापारी आज करोड़ो और अरबों में खेल रहे हैं। शिक्षा के निजीकरण के नाम पर भ्रष्टाचाररूपी अवैध कमाई को मुनाफे का नाम दिया जा रहा है। इसी तरह चिकित्सा को व्यापारियों के हाथों सौंपने से आम आदमी बिना इलाज के मर रहा है। सरकारी अस्पताल में तो मरीज को केवल बाहर से दवा लाने पर विवश किया जाता है लेकिन निजी अस्पताल तो मरीजों का घर और खेत सहित जेबर भी बिकवा रहे हैं। किसान का आलू जब खेत में होता है तो दो रुपये किलो बिकता है लेकिन जब वह धन्ना सेठ के गोदामों में पहुंच जाता है तो वह 15-20 रुपये किलो क्यों हो जाता है ?
किसानों से कौडि़यों के भाव जमीन खरीदकर कौन कुबेरपति बन जाता है ? अन्ना हजारे टीम के प्रिय वकील क्या गरीब, शोषित और ईमानदार लोगों का मुकदमा ल़ड़कर सम्पन्नतम हुए हैं। इस आंदोलन के दौरान आरक्षण हटाओ-भ्रष्टाचार मिटाओ का नारा भी दिया गया लेकिन सवाल यह है कि निजी क्षेत्र में तो आरक्षण नहीं है फिर वहां भ्रष्टाचार का नंगा नाच क्यों हो रहा है ? अन्ना की इस सिविल सोसायटी में कोई गरीब, मजदूर, किसान, दलित, पिछड़ा या अल्पसंख्यक क्यों नहीं है ? चंद सफेद कॉलर वाले व पूर्व नौकरशाह इस देश के अघोषित नियंता नहीं बन सकते। निजी क्षेत्र में फैले भ्रष्टाचार पर अन्ना हजारे और बाबा रामदेव क्यौं चुप हैं ? क्या निजी क्षेत्र जनलोकपाल के दायरे में नहीं आना चाहिए ?
वस्तुतः निजी क्षेत्र को भी सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत लाना चाहिए, तभी देश से भ्रष्टाचार की खात्मे की शुरूआत होगी। इस सच्चाई से इंकार नहीं किया जा सकता कि भ्रष्टाचार की ज़डे काफी गहरी हैं। केवल लोकपाल विधेयक पास होने से देश में भ्रष्टाचार समाप्त होने की बात सोचने वाले लोग कल्पनालोक में विचरण कर रहे हैं। जब कोई बुराई कार्यालय और दुकान अथवा कार्यस्थल तक सीमित हो तो उसे रोका जा सकता है लेकिन अब भ्रष्टाचार ने घरों में प्रवेश कर लिया है। किसी भी माता-पिता ने अपनी संतान से इस कारण रिश्ता नहीं तोड़ा कि उसका पुत्र अथवा पुत्री भ्रष्ट है और रिश्वत अथवा कालाबाजारी में लिप्त हैं। किसी पत्नी ने इस बात पर अपने पति को तलाक नहीं दिया है कि उसका पति भ्रष्ट तरीके से पैसे बना रहा है। घर में घुसे भ्रष्टाचार को मिटाने के लिए न कानून काम आयेगा और न ही अन्ना हजारे का अनशन।
जरूरत इस बात की है भ्रष्टाचार के खिलाफ जनांदोलन शुरू हो। इसकी शुरूआत हमें अपने घर, गली, मोहल्ले व शहर से करनी होगी। अपने मित्रों और रिश्तेदारों से करनी होगी। मेरा अभिमत है कि भ्रष्टाचार को केवल सरकारी प्रयासों से समाप्त नहीं किया जा सकता क्योंकि लोकतांत्रिक पद्धति में चुनाव होते हैं और चुनाव बेहद खर्चीले होते है। अतः केवल राजनेताओं और सरकारी मशीनतरी से भ्रष्टाचार समाप्ति की उम्मीद करना पर्याप्त नहीं है। वैध स्त्रोतों से अधिक अर्जित संपत्ति को अगर जब्त किया जाये। भ्रष्ट और कालाबाजारियों के साथ उनके परिजनों को भी आरोपी माना जाना चाहिए क्योंकि आदमी अपनी पत्नी, बच्चों और परिवार के लिए ही भ्रष्ट तरीके से कमाई करता है। जब उसका परिवार हराम की कमाई से गुलछर्रे उड़ा सकता है तो इस अपराध से उसे वंचित क्यों किया जाना चाहिए। अगर ऐसा होता है कि हर पत्नी और बच्चों की निगाह अपने बाप पर होगी कि उनकी गलत कमाई से उन्हें भी जेल की हवा खाना पड़ सकती है। इस तरह का कानून बनना चाहिए कि जिसके अंतर्गतं हर व्यक्ति के आय-व्यय का हिसाब रखा जाये तो सहज ही भ्रष्टाचार दिखाई देने लगेगा। वैसे भ्रष्टाचार का मतलब केवल सरकारी रिश्वत नहीं है। अपितु जनता का दोहन करने वाली हर इकाई दोषी है। भ्रष्टाचार मिटाने के लिए अन्ना के अनशन से काम नहीं चलेगा और न ही पूंजीवादी मीडिया के अर्नगल प्रलाप से। हमें समाज के हर क्षे़त्र में व्याप्त भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ना होगा। वह क्षे़त्र चाहे मीडिया का हो, एनजीओ का हो अथवा व्यापार का। अन्ना हजारे का यह जान लेना चाहिए कि जो संपन्न और सक्रिय वर्ग उनके साथ है, वह दिल से कभी नहीं चाहेगा कि भ्रष्टाचार समाप्त हो। जिस भ्रष्टाचार की बुनियाद पर वह शीर्ष पर हैं। सत्ता और धन के शिखर पर बैठे व्यक्ति कभी नहीं चाहेंगे कि भ्रष्टाचार के खिलाफ आर-पार की ल़ड़ाई हो।




सावन का मस्‍त गीत

सावन का मस्त महीना, रिमझिम पड़ती फुहार मन को तरंगित और आल्हादित कर देता है! लेकिन यह बेदर्दी बरसात नायिका की विरह को नहीं समझ पाती! आइए पढि़ये मेरा सावन गीत-

धीरे धीरे बरसियों बदरवा रे।
भीगे भीगे रे मोरों अचरवा रे।।

संग सखिन बागन में जाऊं
तौऊ मन में मै अकुलाऊं
फूल गुलाब देखि इतरावै
संग भंवरन वो रास रचावै

मेरे प्यासे से रहि गये अधरवा रे
धीरे धीरे बरसियों बदरवा रे।

रैन दिना मोहे चैन न आवै
जियरा मेरौ पिउ पिउ गावै
छोटौ दिवरा ऊ इठलावै
रंग रास मोहे कछु न भावै

मेरौ धक धक करत करेजवा रे
धीरे धीरे बरसियो बदरवा रे

चूनर धानी पहिरै माटी
करी रतियां जांय न काटी
बैरिन कोयलिया बौरावै
और पानी में अगन लगावै

आज बेदर्दी है गयौ जमनवा रे
धीरे धीरे बरसियो बदरवा रे

ननद जिठानी बोली मारै
पिया तेरौ कहूं नैन लड़ावै
मोहे यापै सांच न आवै
प्यारे बलमा चौ तडफावै

मेरौ काबू में नाहें जोवना रे
धीरे धीरे बरसियो बदरवा रे